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परिवर्तन

परिवर्तन

लो सुबह आ गई परिवर्तन की
कैसा प्रहर ये आया है

घाव वो सारे हरे हो चले
मातम अंदर समाया है

दूर ले चला सपनों की दुनिया
काम न कोई हल आया है

परिवर्तन ये कैसा जिसमें
धुप अधिक कम छांया है